2010–2019
अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं
अक्टूबर 2017


अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं

स्वर्गीय पिता की सुख की महान योजना में सिद्धांत, विधियां, और अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं शामिल हैं जिसके द्वारा हम दिव्य प्रकृति के भागीदार बन सकते हैं ।

महानत्तम चुनौतियों में से एक जिसका हम में से प्रत्येक प्रतिदिन सामना करता है कि संसार की चिंताओं को अनुमति न देना कि ये हमारे समय और उर्जा पर इतने हावी हो जाएं कि हम अनंत बातों के प्रति लापरवाह हों जोकि अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं । 1 अपनी कई जिम्मेदारियों और व्यस्त कार्यक्रमों के कारण हम बहुत सरलता से आवश्यक आत्मिक प्राथमिकताओं को स्मरण करने और केंद्रित होने से भटक सकते हैं । कई बार हम इतनी तेज दौड़ने की कोशिश करते हैं कि हम भूल सकते हैं हम कहां जा रहें है और हम क्यों दौड़ रहे हैं ।

प्रेरित पतरस हमें याद कराता है कि यीशु मसीह के शिष्यों के लिये, “उसकी ईश्वरीय सामर्थ ने सबकुछ जो जीवन और भक्ति से संबंध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सदगुण के अनुसार बुलाया है:

“जिनके द्वारा उसने हमें अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम दिव्य प्रकृति के भागीदार बन सकते हैं, दुनिया में भ्रष्टाचार से बच सकते हो ।” 2

मेरा संदेश अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं के महत्व पर जोर डालता है जिसे पतरस द्वारा सच्ची चेतावनी के रूप में बताया गया है कि हम अपनी नश्वर यात्रा में कहां जहां रहे हैं और क्यों । मैं इन महत्वपूर्ण आत्मिक प्रतिज्ञाओं को स्मरण रखने में मदद के लिये सब्त के दिन, पवित्र मंदिर, और हमारे घरों की भूमिकाओं की चर्चा भी करूंगा ।

मैं नम्रतापूर्व प्रार्थना करता हूं कि पवित्र आत्मा हम में से प्रत्येक को निर्देश देगी जब हम मिलकर इन महत्वपूर्ण सच्चाइयों पर विचार करते हैं ।

हमारी दिव्य पहचान

हमारे स्वर्गीय पिता की सुख की महान योजना में सिद्धांत, विधियां, और अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं शामिल हैं जिसके द्वारा हम दिव्य प्रकृति के भागीदार बन सकते हैं । उसकी योजना हमारी अनंत पहचान और उस मार्ग को परिभाषित करती है जिसका हमें सीखने, बदलने, विकास करने, और अंतत:, हमेशा उसके साथ निवास करने के लिये अवश्य ही अनुसरण करना ।

जैसा “परिवार: दुनिया के लिये एक घोषणा” में समझाया गया है:

“संपूर्ण मनुष्य प्राणी---पुरुष और स्त्री--की सृष्टि परमेश्वर के स्वरूप में हुई है । प्रत्येक स्वर्गीय माता-पिता का प्रिय आत्मिक बेटा या बेटी है, और, उसी रूप में, प्रत्येक के पास दिव्य प्रकृति और नियति है ।

“नश्वरपूर्व राज में, आत्मिक बेटे और बेटियां परमेश्वर को अपने अनंत पिता के रूप में जानते और आराधना करते थे और उसकी योजना को स्वीकार किया था जिसके द्वारा उसके बच्चे एक भौतिक शरीर प्राप्त कर पाते और संसार के अनुभव को प्राप्त करके परिपूर्णता की ओर विकास और अतंत: अनंत जीवन के वारिस के रूप में अपनी नियति को प्राप्त करने के लिये ।”3

परमेश्वर अपने बच्चों से प्रतिज्ञा करता है कि यदि वे उसकी योजना के नियमों और उसके प्रिय पुत्र के उदाहरण का अनुसरण करते हैं, आज्ञाओं का पालन करते हैं, और अंत तक विश्वास में कायम रहते हैं, तो उद्धारकर्ता की मुक्ति के परिणामस्वरूप उन्हें “अनंत जीवन प्राप्त होगा, जोकि परमेश्वर के सब उपहारों में महानत्तम है ।” 4 शाश्वत जीवन अंतिम और महान और बहुमूल्य वादा है।

आत्मिक पुन:जन्म

महिमा और सदगुण के लिये प्रभु की बुलाहट का सकारात्मक जवाब देकर हम अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को पूरी तरह से समझते और दिव्य प्रकृति में भाग लेना आरंभ करते हैं । जैसा पतरस ने बताया था, यह बुलाहट उस दुष्टता से बचने का प्रयास करने द्वारा परिपूर्ण होती जो इस संसार में है ।

जब हम उद्धारकर्ता में विश्वास के साथ समर्पित होकर परिश्रम करते हुए आगे बढ़ते हैं, तो उसके प्रायश्चित और पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा, “हमारे भीतर, या हमारे हृदय में एक महान परिवर्तन होता है, कि हमारा झुकाव बुरे कार्यों को करने की ओर नहीं होता, लेकिन निरंतर भलाई ओर होता है ।” 5 हम “फिर से जन्म लेते हैं; हां, परमेश्वर से जन्मे, अपनी संसारिक और पतित अवस्था से बदलकर, धार्मिक अवस्था, परमेश्वर द्वारा मुक्त किए हुए ।” 6 “इसलिये यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गई ।” 7

इस प्रकार का संपूर्ण बदलाव हमारी प्रकृति में औसतन एकदम या एक बारी में नहीं होता है । हमारे उद्धारकर्ता के समान, हम भी “परिपूर्णता को एकदम प्राप्त नहीं करते हैं, लेकिन अनुग्रह पर अनुग्रह द्वारा करते प्राप्त करते हैं ।” 8 “क्योंकि देखो, प्रभु परमेश्वर इस प्रकार कहता है: मैं मानव संतान को नियम पर नियम, आज्ञा पर आज्ञा, थोड़ा यहां, थोड़ा वहां दूंगा; और आशीषित हैं वे जो मेरे उपदेशों पर ध्यान देते हैं, और मेरी सलाह पर कान लगाते हैं, क्योंकि वे ज्ञान की बातें सीखेंगे ।” 9

आत्मिक पुन:जन्म की इस अनवरत प्रक्रिया में पौरोहित्य विधियां और पवित्र अनुबंध जरूरी हैं; ये परमेश्वर द्वारा नियुक्त माध्यम भी हैं जिसके द्वारा हम उसकी अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को प्राप्त करते हैं । विधियां जो योग्यता से प्राप्त की जाती और निरंतर स्मरण की जाती हैं दिव्य माध्यमों को खोल देती हैं जिसके द्वारा परमेश्वरत्व की शक्ति हमारे जीवनों में आ सकती हैं । अनुबंध जिनका दृढ़ता से सम्मान और हमेशा स्मरण किया जाता है नश्वरता में और अनंतकाल दोनों के लिये उद्देश्य और आशीषों का आश्वासन उपलब्ध कराते हैं ।

उदाहरण के लिये, परमेश्वर हम से प्रतिज्ञा करता है, कि हमारी विश्वसनीयता के अनुसार, हमें परमेश्वरत्व के तीसरे सदस्य, अर्थात पवित्र आत्मा की निरंतर संगति प्राप्त होगी, 10 कि यीशु मसीह के प्रायश्चित के द्वारा हम अपने पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते हैं और हमेशा इसे बनाए रख सकते हैं, 11 ताकि हम इस संसार में शांति प्राप्त कर सकें, 12 कि उद्धारकर्ता ने मृत्यु के बंधनों को तोड़ दिया है और कब्र पर विजय प्राप्त की थी, 13 और कि परिवार समय और अनंतकाल के लिए एक हो सकते हैं ।

स्पष्ट है, सभी अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं जो स्वर्गीय पिता अपने बच्चों को प्रदान करता है उन्हें व्यापक रूप से गिना या प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है । फिर भी, प्रतिज्ञा की गई आशीषों को आंशिक सूची जिसका मैंने अभी वर्णन किया है हम में से प्रत्येक को अचंभित करेंगी, 14 और हम झुकेंगे और पिता की 15 यीशु मसीह के नाम में उपासना करेंगे ।

प्रतिज्ञाओं को स्मरण करना

अध्यक्ष लोरैंजो स्नो ने चेतावनी दी थी, “भूलने की हमारी प्रवृति इतनी अधिक है कि हम नश्वर जीवन के महान उद्देश्य को भूल जाते हैं, हमारे स्वर्गीय पिता की मंशा को जिसके लिये हमें नश्वरता में रखकर यहां भेजा गया है, उस पवित्र बुलाहट को भी जिस से हमें नियुक्त किया गया है; और इस प्रकार, अस्थायी बातों पर विजय प्राप्त करने के स्थान पर ...  , हम बहुत बार इस संसार की बातों पर केंद्रित हो जाते हैं बिना उस दिव्य मदद को प्राप्त किए जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया है, जोकि अकेले ही हमें उन अस्थायी बातों पर विजय प्राप्त करने योग्य बना सकती है ।” 16

संसार के स्तर और भ्रष्टता से ऊपर उठने में मदद के लिये सब्त दिन और पवित्र मंदिर परमेश्वर द्वारा स्थापित दिव्य मदद के दो विशेष स्रोत हैं । शुरू में हम सोच सकते हैं कि सब्त दिन का पालन करने और मंदिर जाने के महानत्तम उद्देश्य आपस में जुड़े हुए हैं लेकिन भिन्न हैं । हालांकि, मैं विश्वास करता हूं कि ये दो उद्देश्य निश्चितरूप से एक हैं और हमें व्यक्तिगतरूप से और हमारे घरों में आत्मिकरूप से मजबूती प्रदान करने के लिये मिलकर कार्य करते हैं ।

सब्त

परमेश्वर ने सब वस्तुओं की सृष्टि करने के बाद, उसने सातवें दिन विश्राम किया और आज्ञा दी कि प्रत्येक सप्ताह लोगों को उसे स्मरण करने में सहायता के लिये एक दिन विश्राम का समय होगा । 17 सब्त परमेश्वर का समय है, एक पवित्र समय उसकी आराधना और उसकी महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को स्मरण करने के लिये विशेषकर अलग किया है ।

प्रभु ने इस प्रबंध में निर्देश दिया है

“कि तुम स्वयं को संसार से संपूर्णरूप से निष्कलंक रखोगे, तुम मेरे पवित्र दिन प्रार्थना के घर जाओगे और प्रभु-भोज सभा में भाग लोगे;

“क्योंकि वास्तव में यह दिन तुम्हारे लिये अपने कामों से विश्राम करने, और परम प्रधान को अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिये नियुक्त किया गया है ।” 18

इस प्रकार, सब्त को हम विधियों में भाग लेते और के विषय में सीखते, प्राप्त करते, और अनुबंधों को नवीन करते हुए पुत्र के नाम में पिता की आराधना करते हैं । उसके पवित्र दिन, हमारे विचार, कार्य, और व्यवहार, चिन्ह हैं जो हम परमेश्वर को देते हैं और उसके प्रति हमारे प्रेम के प्रतीक । 19

सब्त का एक अतिरिक्त उद्देश्य हमारे दृष्टिकोण को संसार की बातों हटाकर अनंतकाल की आशीषों के लिये ऊपर उठाना है । इस पवित्र समय के दौरान अपने व्यस्त समय के नियमित कार्यों से हटकर, हम “परमेश्वर की ओर देख सकते हैं”20 और महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को स्वीकार और स्मरण करने के द्वारा जीवन बिता सकते हैं जिससे हम दिव्य प्रकृति के भागीदार हो जाते हैं ।

पवित्र मंदिर

परमेश्वर ने हमेशा अपने लोगों को मंदिर निर्माण का आदेश दिया है, ऐसा पवित्र स्थान जिसमें योग्य संत सुसमाचार की पवित्र रीतियों और विधियों को स्वयं के लिये और मृतकों के लिये कर सकते हैं । मंदिर आराधना करने के अत्याधिक पवित्र स्थान हैं । मंदिर वास्तव में प्रभु का घर है, एक पवित्र जगह विशेषरूप से परमेश्वर की आराधना और उसके महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को प्राप्त और स्मरण करने के लिये अलग किया का स्थान ।

इस प्रबंध में प्रभु ने निर्देश दिया है, “अपने आपको संगठित करो; प्रत्येक आवश्यक बात को तैयार करो; और एक घर स्थापित करो, अर्थात प्रार्थना का घर, उपवास का घर, विश्वास का घर, सीखने का घर, महिमा का घर, अनुशासन का घर, परमेश्वर का घर ।”21 मंदिर आराधना का मुख्य केंद्र विधियों में भाग लेना और अनुबंधों को सीखाना, प्राप्त करना, और स्मरण करना है । मंदिर में अन्य स्थानों की तुलना में हम भिन्न रूप से सोचते, कार्य करते और वस्त्र पहनते हैं ।

मंदिर का मुख्य उद्देश्य हमारे दृष्टिकोण को संसार की बातों से हटाकर अनंतकाल की आशीषों के लिये ऊपर उठाना है । कुछ समय के लिये उन संसारिक वातावरण से हटकर जिनसे हम परिचित हैं, हम “परमेश्वर की ओर देख सकते हैं” 22 और महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को स्वीकार और स्मरण करने के द्वारा जीवन बिता सकते हैं जिससे हम दिव्य प्रकृति के भागीदार हो जाते हैं ।

कृपया ध्यान दें कि सब्त का दिन और मंदिर, परमेश्वर की आराधना करने और उसके बच्चों को उसकी महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को स्वीकार और स्मरण करने के विशेषरूप से अलग किए गए पवित्र समय और पवित्र स्थान हैं । जैसा परमेश्वर द्वारा स्थापित किया गया है, सहायता के इन दो दिव्य स्रोतों का मुख्य उद्देश्य बिलकुल वही है: शक्तिशाली रूप से और बार-बार हमारे ध्यान को हमारे स्वर्गीय पिता, उसके एकलौते पुत्र, पवित्र आत्मा, और उन प्रतिज्ञाओं पर केंद्रित करना है जो उद्धारकर्ता के पुनास्थापित सुसमाचार की विधियों और अनुबंधों से संबंधित हैं ।

हमारे घर

महत्वपूर्णरूप से, घर को समय और स्थान का सर्वोत्तम संगठन होना चाहिए जहां व्यक्ति और परिवार परमेश्वर की महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं को अधिक प्रभावशाली रूप से स्मरण कर सकते हैं । रविवार सभाओं में समय व्यतीत करने और मंदिर के पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिये अपने घरों से निकलना आवश्यक है लेकिन अपर्याप्त है । केवल जब हम आत्मा और सामर्थ को उन गतिविधियों से प्राप्त करके अपने साथ अपने घरों में लाते हैं तो हम अपने ध्यान को नश्वर जीवन के महान उद्देश्यों पर बनाए रखते हैं और संसार के भष्टाचार पर विजय प्राप्त करते हैं । सब्त और मंदिर के हमारे अनुभव आत्मिक उत्प्रेरक होने चाहिए जो लोगों और परिवारों और हमारे घरों को सीखे गए पाठों की नियमितरूप से याद दिलाते हैं, पवित्र आत्मा की शक्ति और उपस्थिति के साथ, प्रभु यीशु मसीह के प्रति अनवरत और गहरे परिवर्तन के साथ, और परमेश्वर की अनंत प्रतिज्ञाओं में “आशा23 की परिपूर्ण चमक के साथ ।”

सब्त और मंदिर हमारे घरों को “उत्तम मार्ग”24 4 से स्थापित करने में सहायता सकते हैं जब “जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ हम मसीह में एकत्र करें ।” 25 हम उसके पवित्र समय के साथ जो कुछ करते हैं और उसके पवित्र स्थान से हम जो कुछ सीखते हैं दिव्य प्रकृति की भागीदार होने के लिये जरूरी है ।

प्रतिज्ञा और गवाही

हम आसानी से नश्वरता के नियमित और साधारण मामलों से पराजित हो सकते हैं । सोना, खाना, कपड़े पहनना, काम करना, खेलना, व्यायाम करना, और बहुत सी अन्य साधारण गतिविधियां जरूरी और महत्वपूर्ण हैं । लेकिन अंतत:, जो हम बनते हैं हमारे ज्ञान और पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा से सीखने की हमारी इच्छा का परिणाम है; यह केवल हमारे जीवन काल के दौरान प्रतिदिन की गतिविधियों का परिणाम नहीं है ।

सुसमाचार किए गए विभिन्न कार्यों की नियमित जांच-सूची से बहुत अधिक है; असल में, यह सच्चाई की अति सूंदर कढ़ाई है जो “परिपूर्णरूप से बनाई” 26 और बुनी गई, यह हमारे स्वर्गीय पिता और प्रभु यीशु मसीह के समान बनने में हमारी मदद के लिये बनी है, अर्थात दिव्य प्रकृति के भागीदार । सच में, हम “लक्ष्य से परे देखने के कारण अंधे हो जाते हैं” 27 जब यह सर्वोत्तम आत्मिक सच्चाई संसार के देख-रेख, चिंताओं, और अनियमितताएं द्वारा धूमिल हो जाती है ।

जब हम बुद्धिमान होते और पवित्र आत्मा को हमारा मार्गदर्शक,28 होने को निमंत्रण देते हैं, 28 तो मैं वादा करता हूं वह हमें सीखाएगा सच क्या है । “वह मसीह की गवाही देगा, और हमें दिव्य दृष्टिकोण से प्रेरित करता है”29 जब हम अपनी अनंत नियति को परिपूर्ण करने प्रयास करते और दिव्य प्रकृति के भागीदार बन जाते हैं ।

मैं अपनी गवाही देता हूं कि हमारी विधियों और अनुबंधों से संबंधित अत्याधिक महान और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएं सच्ची हैं । प्रभु ने यह घोषणा की है,

“मैं तुम्हें निर्देश देता हूं कि तुम्हें मेरे सम्मुख कैसे चलना चाहिए, ताकि तुम्हारे उद्धार के लिये लाभदायक हो ।

मैं, प्रभु, विवश हूं जब तुम उसे करते हो जो मैं कहता हूं; लेकिन जब तुम उसे नहीं करते जो मैं कहता हूं, तुम्हारे लिये कोई प्रतिज्ञा नहीं है ।”30

मैं गवाही देता हूं कि हमारा स्वर्गीय पिता जीवित है और उद्धार की योजना का रचियता है । यीशु मसीह उसका एकलौता पुत्र, हमारा उद्धारकर्ता और मुक्तिदाता है । वह जीवित है । और मैं प्रमाणित करता हूं कि पिता की योजना और प्रतिज्ञाएं, उद्धारकर्ता का प्रायश्चित, पवित्र आत्मा की संगति इस संसार में और आने वाले “संसार में अनंत जीवन में शांति संभव करती है ।” 31 इन बातों की मैं प्रभु यीशु मसीह के पवित्र नाम में गवाही देता हूं, आमीन ।