2010–2019
परमेश्वरी की प्रभावशाली गवाह: मॉरमन की पुस्तक
अक्टूबर 2017


परमेश्वरी की प्रभावशाली गवाह: मॉरमन की पुस्तक

मॉरमन की पुस्तक येशु मसीह की दिव्यता, यूसुफ स्मिथ की भविष्यवाणियों का आह्वान और इस गिरजे की पूर्ण सच्चाई का परमेश्वर के सम्मोहक साक्षी है।

मॉरमन की पुस्तक ने केवल हमारे धर्म का मुख्य सिद्धांत है, लेकिन यह हमारे गवाहियों का मुख्य सिद्धांत भी बन सकती है ताकि जब परिक्षाएं या अनुत्तरित प्रश्नों से हमारा सामना होता है, तो यह हमारी गवाहियों को सुरक्षित रख सके । यह पुस्तक सच्चाई के तराजू में एक भार है जिसका वजन सारे आलोचकों के तर्कों से मिलकर बने वजन से अधिक है । क्यों ? क्योंकि यदि यह सच्ची है, तो फिर जोसफ स्मिथ एक भविष्यवक्ता था और यह यीशु मसीह का पुनास्थापित गिरजा है, किसी भी ऐतिहासिक या अन्य तर्कों के विपरीत । इस कारण से, आलोचक मॉरमन की पुस्तक को झूठा साबित करने का इरादा करते हैं, लेकिन जिन बाधाओं का वे सामना करते हैं वे अजय हैं, क्योंकि यह पुस्तक सच्ची है ।

सर्वप्रथम, आलोचकों को समझाना चाहिए कि कैसे जोसफ स्मिथ, सीमित शिक्षा वाला 23 साल का किसान युवा, ऐसी पुस्तक की रचना कर सकता है जिसमें सैंकड़ों बेजोड़ नाम और स्थान हैं, साथ में कहानियां और घटनाएं हैं । इसी प्रकार, बहुत से आलोचक कहते हैं कि वह रचनात्मकरूप से प्रतिभावान था और मॉरमन की पुस्तक में ऐतिहासिक विषय को लिखने के लिये उसने बहुत सी पुस्तकों और अन्य स्थानीय स्रोतों का सहारा लिया । लेकिन उनके दावों के विपरीत, एक भी ऐसा गवाह नहीं था जो कह सके कि उसने अनुवाद आरंभ होने से पहले जोसफ स्मिथ के पास इन कथित स्रोतों को देखा हो ।

फिर भी यदि ये तर्क सही हैं, तो यह मॉरमन की पुस्तक के अस्तित्व की व्याख्या करने के लिये अत्याधिकरूप से अपर्याप्त हैं । किसी को इस प्रश्न का उत्तर भी देना चाहिए: कैसे जोसफ ने इन सब कथित स्रोतों को पढ़ा, और अनुचित बातों को अलग कर दिया ताकि सारे तथ्यों में ताल-मेल रख सके कि कौन किस स्थान और कब था, और फिर इसे लिखने के लिये कहे, एक परिपूर्ण समृति के द्वारा ? क्योंकि जब जोसफ ने अनुवाद किया, उसके पास किसी भी प्रकार के नोट्स नहीं थे । असल में, उनकी पत्नी एम्मा ने बताया: “उनके पास न तो कोई हस्तलिपि थी और न ही पढ़ने के लिये कोई पुस्तक ।  … यदि उसके पास कोई वस्तु होती तो वह इसे मुझ से नहीं छिपा सकता था ।” 1

तो जोसफ ने बिना किसी नोट्स के कैसे 500 पृष्ठों से अधिक पुस्तक को बोलकर लिखवाने की उपलब्धि हासिल की थी ? ऐसा करने के लिये, उस न केवल रचनात्मकरूप से प्रतिभावान होना चाहिए, बल्कि स्मरणशक्ति भी कैमरे के समान परिपूर्ण होनी चाहिए । लेकिन यदि यह सच है, तो उसके आलोचकों ने क्यों नहीं इस विलक्षण प्रतिभा पर प्रश्न उठाए ?

लेकिन और भी है । ये तर्क केवल पुस्तक की ऐतिहासिक सामग्री के विषय में है । वास्तविक मुद्दे अभी भी कायम हैं: कैसे जोसफ ने ऐसी पुस्तक को उपन्न किया जो पढ़ने वालों को आत्मिकता महसूस कराती है, और कहां से उसने ऐसे गहन सिद्धांत प्राप्त किये, जिसमें से बहुत से उसके समय के ईसाई मान्यताओं का समर्थन या खंडन करते हैं ?

उदाहरण के लिये, मॉरमन की पुस्तक अधिकांश ईसाई मान्यताओं के विपरीत सीखाती है, कि आदम का पतन विकास करने के लिये एक साकारात्मक कदम था । यह बपतिस्मे के समय बनाए अनुबंधों को प्रकट करती है, जिसे बाइबिल में नहीं बताया गया है ।

इसके अतिरिक्त, कोई पूछ सकता है, जोसफ को इतना प्रभावशाली अंर्तज्ञान कहां से मिला कि मसीह के प्रायश्चित के कारण, वह न केवल हमें शुद्ध करता बल्कि हमें परिपूर्ण भी कर सकता है ? उसे कहां से अलमा 32में विश्वास पर इतना उल्लेखनीय प्रवचन प्राप्त हुआ था ? या उद्धारकर्ता के प्रायश्चित पर राजा बिन्यामीन का प्रवचन, जोकि शायद संपूर्ण धर्मशास्त्र में इस विषय पर सबसे अधिक प्रभावशाली प्रवचन है ? या जैतून के वृक्ष का दृष्टांत इसकी सारी जटिलताओं और सैद्धांतिक बहुतायात सहित ? जब मैं यह दृष्टांत पढ़ता हूं, तो मेरे लिये इसकी जटिलताओं को समझने के लिये चित्र बनाना पड़ता है । तो हम कैसे मान लें जोसफ स्मिथ ने इन उपदेशों को अपने विचारों से बोलकर बिना किसी भी नोट्स के लिखवाया हो ?

इस तरह के निष्कर्ष के विपरीत, परमेश्वर के प्रभुत्व का प्रमाण संपूर्ण मॉरमन की पुस्तक में मिलता है, जैसा इसकी सर्वोत्तम सैद्धांतिक सच्चाइयों से प्रमाणित होता है, विशेषरूप से यीशु मसीह के प्रायश्चित पर निपुण उपदेश ।

यदि जोसफ भविष्यवक्ता नहीं था, तो इन का और बहुत से अन्य असाधारण सैद्धांतिक अर्तदृष्टिकोणों का वर्णन करने लिये, आलोचकों को अवश्य ही यह तर्क देना चाहिए कि वह अध्यात्मिकता में भी प्रतिभावान था । लेकिन यदि यह बात होती , तो कोई पूछ सकता है, ऐसा क्यों हुआ कि जोसफ एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो मसीह की सेवकाई के 1800 वर्षों बाद इतने विस्तार से विशिष्ट और स्पष्ट सिद्धांतों को प्रकाश में लाया था ? क्योंकि यह प्रकटीकरण के कारण था, न कि असाधारण बुद्धि के, जोकि इस पुस्तक का स्रोत था ।

लेकिन यदि हम मान भी लें कि जोसफ रचनात्कमकरूप से और अध्यात्मिकता में प्रतिभावान था, और उसके पास तेज स्मरण शक्ति भी थी---तो केवल ये प्रतिभाएं उसे कुशल लेखक नहीं बनाती हैं । मॉरमन की पुस्तक के अस्तित्व को समझाने के लिये, आलोचकों को यह भी दावा करना चाहिए कि जोसफ 23 वर्ष की आयु में स्वाभाविकरूप से प्रतिभावान लेखक था । वरना वह इतने सारे नामों, स्थानों और घटनाओं को बिना किसी असंगितयों के कैसे जोड़ पाया ? कैसे उसने इतने विस्तारपूर्वक युद्ध की रणनीतियां, प्रभावशाली उपदेश लिखे, और उन वाक्यांशों की रचना की जो धर्मशास्त्र में चिंहित किये जाते हैं, याद रखे जाते हैं, उद्धरित किये जाते, और लाखों लोगों द्वारा फ्रिज के दरवाजों पर लिखे जाते हैं, जैसे, “जब तुम अपने साथियों की सेवा करते हो, तुम अपने परमेश्वर की सेवा करते हो” (मुसायाह 2:17) या “मनुष्य हैं, ताकि उन्हें आनंद प्राप्त हो” (2  नफी 2:25) । यह संदेश प्रभावशाली हैं-- ऐसे संदेश हैं जो जीवित हैं और सांस लेते हैं और प्रेरित करते हैं । यह सुझाव देना कि जोसफ स्मिथ ने 23 वर्ष की आयु में उस हुनर को प्राप्त कर इस प्रभावशाली ग्रंथ को लगभग 65 दिनों में बस एक ही मसौदे में लिख डाला था जीवन की वास्तविकताओं के विपरीत है ।

अध्यक्ष रसल  एम. नेलसन, एक अनुभवी और कुशल लेखक ने, बताया था कि उन्होंने 40 से अधिक महा सम्मेलन वार्ताओं को फिर से लिखा है । अब हम कैसे विश्वास कर लें कि जोसफ स्मिथ ने, स्वयं, पूरी मॉरमन की पुस्तक को बोलकर लिखवाया था एक ही मासेदे में इसके बाद बिना किसी मुख्य छोटी व्याकरणिक परिवर्तन किये ?

जोसफ की पत्नी एम्मा ने इस प्रकार के कार्य की असंभावना पुष्टि की थी: “जोसफ स्मिथ को युवक के रूप में न तो लिखना, न ही अच्छे से बोलना, और न ठीक से पत्राचार करना आता था, मॉरमन की पुस्तक लिखने के समान पुस्तक लिखवाना तो बहुत दूर की बात है ।” 2

और अंत में, यदि कोई इन सब तर्कों को स्वीकार करता है, यद्यपि इसमें संदेह है, आलोचकों के साथ अभी भी एक बड़ी बाधा बनी हुई है । जोसफ स्मिथ ने दावा किया था कि मॉरमन की पुस्तक सोने की पट्टियों पर लिखी हुई थी । इस दावे की जोसफ स्मिथ के समय में बहुत आलोचना हुई थी -- क्योंकि – “सब सोचते थे” कि प्राचीन इतिहास भोजपत्र या चर्मपत्र पर लिखे जाते थे, सालों बाद ही, प्राचीन लेख धातू की पट्टियों पर पाए गए थे । इसके अतिरिक्त, आलोचक दावा करते हैं कि सीमेंट का उपयोग, जैसा मॉरमन की पुस्तक में बताया गया है, तकनीकी रूप से आरंभिक अमेरिकियों के बीच असंभव था, क्योंकि तब तक प्राचीन अमेरिका में सीमेंट के ढांचे नहीं मिले थे । अब आलोचकों ने कैसे इन और इस तरह की अविश्वसनीय खोजों की है ? इस तरह आप देखें तो, जोसफ बहुत, बहुत, भाग्यशाली अटकलबाज भी था । कुछ भी हो, उसके विरूद्ध इन सब तर्कों के बावजूद, जिनका सही होना असंभव है, सभी वर्तमान वैज्ञानिक और शैक्षिणक ज्ञान के विरूद्ध, उसने सही अनुमान लगाया जबकि अन्य सभी गलत थे ।

यह सब कहने और करने के बाद, कोई सोच सकता है, कैसे कोई इन सब कथित तथ्यों और ताकतों पर विश्वास कर सकता है, जिन्हें आलोचक द्वारा लगया गया था, जो संयोगवश इस तरह मिले कि जिससे जोसफ मॉरमन की पुस्तक लिख पाया और इस प्रकार एक शैतानी और झूठे कार्य को पूरा किया । इस तरह से तर्क के प्रत्यक्ष विरोध में, इस किताब ने लाखों लोगों को शैतान को अस्वीकार करवाया है और कई लोगों को मसीह जैसे जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है।

हालांकि कोई आलोचकों के वर्णनों पर विश्वास करने का चुनाव कर सकता है, मेरे लिये ऐसे करने से कोई भी बौद्धिक या आध्यात्मिक प्रगति नहीं होगी । इन बातों पर विश्वास करने के लिये, मुझे एक बाद एक कई अप्रमाणित वर्णनों को स्वीकार करना पड़ेगा । इसके अतिरिक्त, मुझे ग्यारह  गवाहों,3 में से हर एक के गवाही को भी नजरअंदाज करना होगा, बेशक प्रत्येक अंत तक अपनी गवाही में अंत तक गवाही के प्रति सच्चे बने रहे थे; मुझे उस दिव्य सिद्धांत को भी अस्वीकार करना पड़ेगा जो इस पुस्तक में हर पृष्ठ में लिखा हुआ है; मुझे उस तथ्य को भी नजरअंदाज करना होगा कि बहुत लोग, जिसमें मैं भी हूं, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद परमेश्वर के अधिक निकट आए हैं किसी भी अन्य पुस्तक के मुकाबले, और इन सब के अलावा मुझे पवित्र आत्मा की प्रेरणाओं को भी इंकार करना होगा । यह हर उस बात के विपरीत होगा जिसे मैं जानता हूं कि सच है ।

मेरे एक अच्छे और समझदार मित्र ने इस गिरजे को कुछ समय के लिये छोड़ दिया था । उसने हाल ही में मुझे लिखा है: “आरंभ में, मैं मॉरमन की पुस्तक को ऐतिहासिक, भौगोलिक, भाषा के आधार पर, और सांस्कृतिकरूप से साबित करना चाहता था । लेकिन जब मैंने अपना ध्यान यीशु मसीह और उसके बचाने वाले मिशन पर केंद्रित किया, तो मुझे इसकी सच्चाई की गवाही मिलनी आरंभ हो गई । एक दिन जब मैं मॉरमन की पुस्तक को अपने कमरे में पढ़ रहा था, मैं रूका और घुटनों के बल झुका, और हृदय से प्रार्थना की और निसंदेह रूप से महसूस किया कि स्वर्गीय पिता ने मेरी आत्मा को प्रेरणा दी कि यह गिरजा और मॉरमन की पुस्तक निश्चितरूप से सच्ची है । गिरजे की दोबारा जांच करने के मेरे साढ़े तीन वर्षों ने मुझे संपूर्ण हृदय से और इसकी सच्चाई के प्रति दृढ़ता से गिरजे में वापस लौटाया है ।

यदि कोई मॉरमन की पुस्तक को विनम्रता से पढ़ने और मनन करने के लिय समय निकालता, जैसे मेरे मित्र ने किया था, और आत्मा के मधुर फलों पर ध्यान देता है, वह अतत: उचित गवाही प्राप्त करेगा/करेगी ।

मॉरमन की पुस्तक हमारे लिये परमेश्वर के अनमोल उपहारों में से एक है । यह तलवार और ढाल दोनों है --- यह युद्ध में धर्मी के हृदय में परमेश्वर के वचनों को भेजती और सच्चाई के सर्वोत्तम रक्षक के समान कार्य करती है । संतों के रूप में, हमारे पास न केवल मॉरमन की पुस्तक का बचाव करने का मौका है बल्कि इसके दिव्य सिद्धांत की शक्ति के साथ प्रचार करना और यीशु मसीह की सर्वोत्तम गवाही भी देनी है ।

मैं अपनी महत्वपूर्ण गवाही देता हूं कि मॉरमन की पुस्तक का परमेश्वर के उपहार और शक्ति से अनुवाद किया गया था । यह यीशु मसीह की दिव्यता, की प्रभावाशाली गवाह है, जोसफ स्मिथ की भविष्यसूचक नियुक्ति, और इस गिरजे की संपूर्ण सच्चाई है । मैं चाहता हूं कि यह हमारी गवाहियों में महत्वपूर्ण बने, ताकि हमारे बारे में यह कहा जाए, जैसे यह परिवर्तित लमनाइयों के विषय में कहा गया था, कि वे “कभी पथभ्रष्ट नहीं हुए” (अलमा 23:6) । यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।

विवरण

  1. एम्मा स्मिथ, “सिस्टर एम्मा की अंतिम गवाही”, संतों के हेराल्ड, अक्टूबर.  1, 1897, 289, 290

  2. एम्मा स्मिथ, “सिस्टर एम्मा की अंतिम गवाही,” 290

  3. “तीन साक्षियों की गवाही” और “आठ साक्षियों की गवाही”, मॉरमन की पुस्तक देखें।