2010–2019
आज के दिन चुन लो
अक्टूबर 2018


आज के दिन चुन लो

हमारी अनंत खुशी की मात्रा जीवित परमेश्वर और उसके कार्य में शामिल होने में है ।

मैरी पॉपपिन एक अंग्रेजी नानी का काल्पनिक चरित्र है—जिसके पास जादुई शक्तियां हैं ।1 जो पूर्व की हवा में सवार होकर संख्या 17, चैरी ट्री लेन, एडवर्डियन लंदन में परेशान बैंक्स परिवार के पास मदद के लिये पहुंच जाती है । उसे बच्चों, जेन और माईकल की देख-भाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । कोमल लेकिन दृढ़ता से उसने उन्हें छूकर जादुई तरीके से महत्वपूर्ण पाठ सीखाने आरंभ कर दिया ।

जेन और माईकल ने बहुत कुछ सीखा, लेकिन मैरी ने निश्चय किया कि अब इन्हें छोड़ने का समय आ गया है । स्टेज पर मैरी का चिमनी साफ करने वाला मित्र बर्ट, उसे उन्हें छोड़कर न जाने सलाह देता है । वह कहता, “वे बहुत अच्छे बच्चे हैं, मैरी ।”

मैरी जवाब देती है, “मैंने उन्हें सीखाती यदि वे सीखे हुए न होते ? लेकिन मैं उनकी मदद नहीं कर सकती यदि वे मेरी मदद नहीं लेना चाहते, और किसी को भी सीखाना इतना कठिन नहीं है जितना उसे बच्चे को जो सोचता है कि वह सबकुछ जानता है ।”

बर्ट पूछता है, “तो फिर ?”

मैरी जवाब देती है, “तो आगे उन्हें स्वयं सीखना होगा बिना किसी सहायता के ।”2

भाइयों और बहनों, जेन और माईकल बैंक्स के समान, हम “अच्छे बच्चे” हैं जिन्हें सहायता की आवश्यकता है । हमारा स्वर्गीय पिता हमें मदद और आशीष देना चाहता है, लेकिन हम उसे हमेशा ऐसा नहीं करने देते । कभी-कभी, हम ऐसे व्यवहार करते हैं मानो हम पहले से ही सबकुछ जानते हैं । और हमें भी स्वयं सीखना होगा बिना किसी की सहायता के । इसी लिये हम, स्वर्गीय घर, नश्वरपूर्व जीवन से पृथ्वी पर आये थे । हमारे “स्वयं सीखने” में चुनाव करना शामिल है ।

हमारा स्वर्गीय पिता के पालन-पोषण करने का लक्ष्य यह नहीं है कि उनके बच्चे सही करें; यह उसके बच्चों को सही करने का चुनाव करने का और अंतत: उसके समान बनना है । यदि वह मात्र हमें आज्ञाकारी बनना चाहता, तो वह हमारे व्यवहारों का तुंरत पुरस्कार और दंड देता ।

लेकिन परमेश्वर अपने बच्चों को मात्र प्रशिक्षित और आज्ञाकारी बनाकर “पालतू” नहीं बनाना चाहता जो सिलिस्टियल घर में उसके वस्तुओं को चबाते फिरे ।3 नहीं, परमेश्वर चाहता है कि उसके बच्चे आत्मिकरूप से विकसित हों और परिवार के कामकाज में उसकी मदद करें ।

परमेश्वर ने एक योजना स्थापित की है जिसके द्वारा हम उसके राज्य में वारिस बन सकते हैं, अनुबंधित मार्ग जो हमें उसके समान बनने की ओर ले जाता है, उसके समान जीवन के लिये, और हमेशा के लिये परिवार के रूप उसकी उपस्थिति में रहने के लिये ।4 निजी चुनाव इस योजना के लिये महत्वपूर्ण थे और हैं, जिसके बारे में हमने अपने नश्वरपूर्व अस्तित्व में सीखा था । हमने इस योजना को स्वीकार किया और पृथ्वी पर आना चुना था ।

सुनिश्चित करने के लिये कि हम विश्वास करेंगे और अपनी स्वतंत्र का उपयोग करना सीखेंगे, हमारे मनों पर भूलने का परदा डाल दिया गया, ताकि हम परमेश्वर की योजना को याद न रख पाएं । उस परदे के बिना, परमेश्वर का उद्देश्य पूरा नहीं होता क्योंकि हमारा विकास न हो पाता और भरोसमंद उत्तराधिकारी न बन पाते जैसा वह हमें बनाना चाहता है ।

भविष्यवक्ता लेही ने कहा था: “इसलिए, प्रभु परमेश्वर ने मनुष्य को स्वयं के लिए कार्य करने की छूट दी । इसलिए, मनुष्य स्वयं के लिए कार्य नहीं कर सकता था यदि वह एक या अन्य द्वारा फुसलाया जाता ।”5 मौलिक स्तर पर, एक विकल्प यीशु मसीह, पिता के पहलौठे द्वारा दिया गया था । दूसरा विकल्प शैतान, लूसीफर, द्वारा दिया गया था, जो स्वतंत्रता को नष्ट और शक्ति पर कब्जा करना चाहता था ।6

यीशु मसीह के रूप में, “पिता के पास हमारा एक सहायक है ।”7 अपना प्रायश्चित बलिदान पूरा करने के बाद यीशु “स्वर्ग चला गया ... पिता से दया के अपने अधिकारों का दावा करने के लिये जो उसका मानव संतानों पर है ।” और, दया के अधिकारों पर दावा करने बाद, “वह मानव संतानों का पक्ष लेता है ।”8

पिता से हमारे पक्ष में मसीह का दावा विरोध में नहीं है । यीशु मसीह, जिसने अपनी इच्छा को पिता9 की इच्छा में समा जाने की अनुमति दी थी, किसी अन्य बात का समर्थन नहीं करता सिवाए उसके जिसे पिता आरंभ से चाहता था । स्वर्गीय पिता निसंदेह हमारी सफलताओं को शाबाशी देता और खुश होता है ।

मसीह का दावा है, कम से कम एक भाग में, हमें याद दिलाना कि उसने हमारे पापों का मूल्य चूका दिया है और कि कोई भी परमेश्वर के अनुग्रह के प्रभाव से वंचित नहीं है ।10 उनके लिये जो यीशु मसीह में भरोसा करते, पश्चाताप करते, बपतिस्मा लेते, और अंत तक कायम रहते हैं—यह एक प्रक्रिया है जो परमेश्वर के अनुकूल11 बनाती है—उद्धारकर्ता क्षमा करता, चंगाई देता, और दावा करता है । वह हमारा मददगार, सलाहकार, और मध्यस्थ है—जो हमारे परमेश्वर के अनुकूल बनने को प्रमाणित और समर्थन करता है ।12

इसके बिलकुल विपरीत, लूसीफर दोष लगाने वाला और अत्याचार करने वाला है । यहून्ना प्रकटीकर्ता ने लूसीफर की अंतिम हार की व्याख्या की है: “और मैंने स्वर्ग पर से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना, कि अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ, और राज्य, और उसका अधिकार प्रकट हुआ है ।” क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया । और वे मेम्ने के लहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवंत हुए थे ।”13

लूसीफर ही दोष लगाने वाला है । उसने नश्वरपूर्व अस्तित्व में हमारे विरूद्ध बोला था, और वह इस जीवन में भी हमारी आलोचना करना जारी रखे हुए है । वह हम नीचे खीचने का प्रयास करता है । वह हमें अनंत कष्टों का अनुभव करवाना चाहता है । वह हमें कहता है कि हम योग्य नहीं है, हमें कहता है कि हम पर्याप्तरूप से अच्छे नहीं है, हमें कहता है कि गलती में सुधार करने का कोई तरीका नहीं है । वह धमकाने वाला है और वह हमें धक्का देता है जब हम नीचे गिरते हैं ।

यदि लूसीफर किसी बच्चे को चलना सीखाता और बच्चा ठोकर खाता, तो वह बच्चे पर चिल्लाता, उसे दंड देता, और उसे दुबारा कोशिश करने से मना करता । लूसीफर के तरीके--अंतत: और हमेशा--निराशा और उदासी लाते हैं । झूठों का यह पिता असत्य14 को बेचना वाला है और हमें धोखा देने और विचलित करने के लिये धूर्तता से कार्य करता है, “क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य उसके समान दुखी हों ।”15

यदि मसीह बच्चे को चलना सीखाता और बच्चा ठोकर खाता, तो वह बच्चे को खड़े होने में मदद करता और अगला कदम लेने के लिये उत्साहित करता ।16 मसीह सहायक और सलाहकार है । उसके तरीके आनंद और आशा लाते हैं--अंतत: और हमेशा ।

परमेश्वर की योजना में हमारे लिये निर्देशन शामिल हैं, जिन्हें धर्मशास्त्र में आज्ञाएं संदर्भ किया जाता । ये आज्ञाएं न तो मनमौजी नियम हैं, न ही थोपे गए नियमों का संग्रह है जो हमें आज्ञाकारी होने के लिये बनाए गये हैं । ये हमारे परमेश्वरत्व के गुणों का विकास करने, स्वर्गीय पिता के पास वापस जाने, और अनंत आनंद प्राप्त करने से जुड़े हैं । उसकी आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारी होना विचारहीन और बुद्धिहीन कार्य नहीं है; हम स्वेच्छा से परमेश्वर और घर जाने के उसके मार्ग को चुनते हैं । हमारे आदर्श वही है जो आदम और हव्वा के लिये था, जिसमें “मुक्ति की योजना की जानकारी उन्हें देने के पश्चात, परमेश्वर ने उन्हें आज्ञाएं दी ।”17 यद्यपि परमेश्वर चाहता है कि हम अनुबंधित मार्ग पर चलें, लेकिन वह हमें चुनने की स्वतंत्रता देता है ।

अवश्य ही, परमेश्वर चाहता, आशा करता, और निर्देश देता है कि उसका प्रत्येक बच्चा स्वयं के लिये चुनाव करे । वह हम पर दबाव नहीं डालता । स्वतंत्रता के उपहार के द्वारा, परमेश्वर अपने बच्चों को “स्वयं के प्रति कार्य करने और न कि उनके कार्य को किये जाने” की अनुमति देता है ।18 स्वतंत्रता हमें चयन की करने या न करने की अनुमति देता है । यह हमें शामिल होने या न होने की अनुमति देता है । ठीक जिस प्रकार हमें आज्ञा मानने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार हमें आज्ञा न मानने के लिये भी बाध्य नहीं किया जा सकता । कोई भी, बिना हमारी इच्छा के, इस मार्ग से हमें हटा नहीं सकता । (इसे उन लोगों के साथ भ्रमित नहीं करना चाहिए जो स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं । वे मार्ग से भटक गए हैं । वे पीड़ित हैं । वे परमेश्वर की समझ, प्रेम, और करूणा प्राप्त करते हैं ।)

जब हम मार्ग से भटक जाते हैं, तो परमेश्वर दुखी होता है क्योंकि वह जानता है इसके कारण हमारी खुशी कम होगी और आशीषें बंद हो जाएंगी । धर्मशास्त्रों में, मार्ग से भटकना पाप के रूप में बताया गया है, और परिणामस्वरूप कम खुशी और बंद आशीषों को दंड कहा जाता है । इस तरह से, परमेश्वर में दंडित नहीं कर रहा; दंड हमारे अपने चुनावों के कारण है, न कि उसके ।

जब हमें पता चलता है कि हम मार्ग से भटक गए हैं, तो हम भटके रह सकते हैं, या यीशु मसीह के प्रायश्चित के कारण, हम अपने कदमों को वापस लेना चुन सकते और मार्ग पर लौट सकते हैं । धर्मशास्त्रों में, बदलने का निर्णय और मार्ग पर वापस लौटने को पश्चाताप कहते हैं । पश्चाताप न करने का अर्थ है कि हम स्वयं को उन आशीषों के अयोग्य बनाते हैं जो परमेश्वर देना चाहता है । यदि हम “उसका आनंद नहीं लेना चाहते जो हम शायद प्राप्त कर सकते हैं,” तो हम “हम अपने स्वयं के स्थान को दुबारा लौटेंगे, उसका आनंद लेने के लिये जिसे हम प्राप्त19 करना चाहते हैं”—यह हम चाहते हैं, परमेश्वर नहीं ।

चाहे हम कितने समय से मार्ग से भटक गए हों या कितनी दूर तक हम भटके हों, जिस क्षण हम बदलने का निर्णय लेते हैं, उसी क्षण परमेश्वर लौटने में हमारी मदद करता है ।20 परमेश्वर के दृष्टिकोण से, सच्चे पश्चाताप और मसीह में दृढ़ता से आगे बढ़ना, एक बार फिर से मार्ग पर लौटना ।21 इस प्रकार है मानो हम कभी भटके ही नहीं थे । उद्धारकर्ता हमारे पापों का भुगतान करता और हमें खुशी और आशीषों के कम होने से स्वतंत्र करता है । इसे धर्मशास्त्रों में क्षमा के रूप मे संदर्भ किया जाता है । बपतिस्मे के बाद, सभी सदस्य मार्ग से भटकते हैं—हम में कुछ तो डूब भी जाते हैं । इसलिये, यीशु मसीह में विश्वास का उपयोग करना, पश्चाताप करना, उससे सहायता प्राप्त करना, और क्षमा प्राप्त किया जाना एक-बार का नहीं अपितु जीवन-भर की निरंतर प्रक्रियाएं हैं, ऐसी प्रक्रियाएं जो दोहराई और बार-बार की जाती हैं । इसी प्रकार हम “अंत तक बने रहते हैं ।”22

हमें चुनने की आवश्यकता है हम किसकी सेवा करेंगे ।23 हमारी अनंत खुशी की मात्रा जीवित परमेश्वर और उसके कार्य में शामिल होने में है । जब इससे आगे स्वयं करने का प्रयास करते हैं, तो हम अपनी स्वतंत्रता का उचितरूप से उपयोग करते हैं । जैसे दो पूर्व सहायता संस्था की महा अध्यक्षाओं ने कहा था, हमें “ऐसे बच्चे नहीं होना चाहिए जिसे हमेशा थपथपाने और सही किए जाने की आवश्यकता होती है ।”24 नहीं, परमेश्वर चाहता है हम समझदार वयस्क बनें और जो स्वयं का नियंत्रण करें ।

पिता की योजना का पालन करने का चुनाव करना एकमात्र तरीका है जिस से हम उसके राज्य में उत्तराधिकारी बन सकते हैं; केवल तभी हम पर भरोसा कर सकता है कि हम ऐसी किसी भी वस्तु को नहीं मांगेंगे जो उसकी इच्छा के विपरीत हो ।25 लेकिन हमें याद रखने की जरूरत है कि “किसी को भी सीखाना उतना कठिन नहीं होता, जितना उस बच्चे के जो सोचता है कि वह सबकुछ जानता है ।” इसलिये हमारे भीतर प्रभु के तरीकों से प्रभु और उसके सेवकों द्वारा सीखाए जाने की इच्छा होने की जरूरत है । हम भरोसा कर सकते हैं कि हम स्वर्गीय माता-पिता के प्रिय बच्चे हैं और सहायता किए जाने के लायक हैं और कि “बिना सहायता के” का अर्थ कभी भी “अकेले” सीखना नहीं होगा ।”26

याकूब के साथ, मैं कहता हूं:

“इसलिए, अपने हृदयों में खुशी मनाओ और याद करो कि तुम अपने स्वयं के प्रति कार्य करने के लिए—हमेशा की मृत्यु या अनंत जीवन का मार्ग चुनने के लिए, स्वतंत्र हो ।

“इसलिए, मेरे प्रिय भाइयों, अपने आपको परमेश्वर की इच्छा के अनुकूल बनाओ, और शैतान … की इच्छा के लिए नहीं; और याद रखो, जब तुम परमेश्वर के अनुकूल बन जाते हो, तब तुम केवल परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा ही बचाए जाओगे ।”27

इसलिये, मसीह में विश्वास चुनें; पश्चाताप चुनें; बपतिस्मा लेना और पवित्र आत्मा प्राप्त करना चुनें; परिश्रम से प्रभु-भोज के लिये तैयार होना और योग्य होकर इसमें भाग लेना चुनें; मंदिर में अनुबंध बनाना चुनें; और जीवित परमेश्वर और उसके बच्चों की सेवा करना चुनें । हमारे चुनाव निश्चित करते हैं कि हम कौन हैं और हम क्या बनेंगे ।

मैं याकूब की आशीष के साथ समाप्त करता हूं: “इसलिए, परमेश्वर तुम्हें पुनरुत्थान की शक्ति के द्वारा मृत्यु, और प्रायश्चित की शक्ति के द्वारा अनंत म़ृत्यु से भी जीवित करे, ताकि तु्म्हारा परमेश्वर के अनंत राज्य में स्वागत किया जाए, ताकि तुम दिव्य अनुग्रह द्वारा उसकी प्रशंसा करो ।”28 यीशु मसीह के नाम में, आमीन ।