महा सम्मेलन
“शांत रहो, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं”
अप्रैल 2024 महा सम्मेलन


“शांत रहो, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं”

हम शांत रह सकते हैं और जान सकते हैं कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता हैं।

हाल ही में प्रभु के नवनिर्मित भवन के प्रदर्शन और मीडिया दिवस के दौरान, मैंने पवित्र भवन के दौरे पर पत्रकारों के एक समूह का नेतृत्व किया था। मैंने अंतिम-दिनों के संतो का यीशु मसीह का गिरजे में मंदिरों के उद्देश्यों का वर्णन किया और उनके कई उत्कृष्ट सवालों के जवाब दिए।

सिलेस्टियल कक्ष में प्रवेश करने से पहले, मैंने समझाया कि प्रभु के भवन का यह विशेष कमरा प्रतीकात्मक रूप से स्वर्गीय भवन की उस शांति और सुंदरता को दर्शाता है जहां हम इस जीवन के बाद लौट सकते हैं। मैंने अपने मेहमानों को बताया था कि सिलेस्टियल कक्ष में रहते हुए हम बात नहीं करेंगे, लेकिन दौरे के अगले स्थान पर जाने के बाद मुझे किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में खुशी होगी।

सिलेस्टियल कक्ष से बाहर निकलने के बाद और जब हम अगले स्थान पर एकत्र हुए, मैंने अपने मेहमानों से पूछा कि क्या उनके पास कोई विचार है जिसे वे साझा करना चाहते हैं। एक पत्रकार ने बहुत भावुक होकर कहा, “मैंने अपने पूरे जीवन में कभी भी ऐसा अनुभव नहीं किया है। मुझे मालूम नहीं था कि दुनिया में इतनी शांति कहीं हो सकती थी; मुझे विश्वास ही नहीं था कि ऐसी शांति संभव भी थी।”

मैं इस व्यक्ति के बयान की ईमानदारी और गंभीरता दोनों से प्रभावित हुआ था। और पत्रकार की प्रतिक्रिया ने हमारे बाहरी वातावरण के शोर-शराबे को दूर करने के लिए शांति के महत्वपूर्ण पहलू को उजागर किया था।

जब बाद में मैंने पत्रकार की टिप्पणी और हमारे आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ पर विचार किया—व्यस्तता, शोर, विचलन, ध्यान भटकाना, और भटकाव जिस पर अक्सर ध्यान देने की आवश्यकता होती है—मेरे दिमाग में एक पवित्र शास्त्र आया: “शांत रहो, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं”1

मैं प्रार्थना करता हूं कि पवित्र आत्मा हम में से प्रत्येक को समझ देगी जब हम अपने जीवन में शांति के एक उच्च और पवित्र स्तर पर विचार करते हैं—आत्मा की आंतरिक आत्मिक शांति जो हमें यह जानने और याद रखने में सक्षम बनाती है कि परमेश्वर हमारे स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है। यह उल्लेखनीय आशीषें उन सभी गिरजा सदस्यों के लिए उपलब्ध है जो “प्रभु के अनुबंधित लोग” बनने के लिए विश्वास से प्रयास कर रहे हैं।2

शांत रहो

1833 में, मिसूरी में संत बहुत बडी उत्पीड़न का निशाना बने। भीड़ ने उन्हें जैक्सन काउंटी में उनके घरों से निकाल दिया था, और कुछ गिरजा सदस्यों ने खुद को आसपास के अन्य शहरों में स्थापित करने की कोशिश की थी। लेकिन उत्पीड़न जारी रहा, और मौत की धमकियां बहुत सी थी। इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में, प्रभु ने ओहायो के कर्टलैंड में भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ को निम्नलिखित निर्देश प्रकट किए थे:

“इसलिए, तुम्हारे हृदयों में सिय्योन के संबंध में दिलासा हो; क्योंकि सभी प्राणी मेरे नियंत्रण में हैं; ढाढस रखो (शांत रहो) और जानो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूं”3

मेरा मानना है कि प्रभु की “शांत रहो” की सलाह का अर्थ केवल न बोलने या न आगे बढ़ने से कहीं अधिक है। शायद उसका इरादा यह है कि हम उसे और उसकी शक्ति को “हर समय और सभी बातों में, और सभी जगहों पर जहां [हम] हों” याद रखें और उन पर भरोसा करें।”4 इस प्रकार, “शांत रहो” हमें आत्मा की आत्मिक शांति के मुख्य स्रोत के रूप में उद्धारकर्ता पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाने का एक तरीका हो सकता है जो हमें कठिन कार्यों को करने और उन पर काबू पाने के लिए मजबूत करता है।

चट्टान पर निर्माण करें

सच्चा विश्वास हमेशा प्रभु यीशु मसीह पर केंद्रित होता है —उसमे अनंत पिता के दिव्य और एकमात्र पुत्र के रूप में और उस पर और उनके द्वारा पूरा किए गए मुक्ति मिशन पर।

“क्योंकि उसने सारे नियमों को पूरा किया है, और वह उन सब पर दावा करता है जो उसमें विश्वास करते हैं; और वे जो उसमें विश्वास करते हैं हर अच्छी बात को थामे रहेंगे; इसलिए वह मानव संतानों का पक्ष लेता है।”5

यीशु मसीह अनंत पिता के पास हमारा मुक्तिदाता,6 हमारा मध्यस्थ,7 और हमारा पक्षधर8 है, और वह चट्टान है जिस पर हमें अपने जीवन की आत्मिक नींव का निर्माण करना चाहिए।

हिलामन ने समझाया,याद रखो, “याद रखो कि यह मुक्तिदाता की चट्टान पर है, जो कि परमेश्वर का पुत्र मसीह है, जिस पर तुम अपनी नींव रख सको; ताकि जब शैतान अपनी प्रबल हवाओं को फेंकेगा, हां, बवंडर मे अपनी बिजली चमकाएगा, हां, जब उसके सारे ओले बरसेंगे और उसके प्रबल तूफान तुम्हें थपेड़े मारेंगे, तुम्हें दुखों की घाटी और अंतहीन श्राप में खींचने के लिए उसके पास बल नहीं होगा, क्योंकि जिस चट्टान पर तुम्हारा निर्माण हुआ हैवह मजबूत आधार है, एक ऐसा आधार जिस पर यदि मनुष्यों का निर्माण हो तो वे गिर नहीं सकते।”9

“चट्टान” के रूप में यीशु मसीह का प्रतीक, जिस पर हमें अपने जीवन की नींव बनानी चाहिए, अति महत्वपूर्ण निर्देश है। कृपया इस पद में ध्यान दें कि उद्धारकर्ता नींव नहीं है। बल्कि, हमें उस पर अपनी व्यक्तिगत आत्मिक नींव बनाने की सलाह दी जाती है।10

नींव किसी इमारत का वह हिस्सा होती है जो उसे जमीन से जोड़ती है। मजबूत नींव प्राकृतिक आपदाओं और कई अन्य विनाशकारी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करती है। एक उचित नींव बड़े क्षेत्र में बनी संरचना के वजन को भी समानरूप से वितरित करती है ताकि मिट्टी पर अधिक भार न पड़े और निर्माण के लिए एक समतल जमीन मिल सके।

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मजबूत नींव वाला मकान।

यदि किसी संरचना को समय के साथ मजबूत और स्थिर बने रहना है तो जमीन और नींव के बीच एक मजबूत और विश्वसनीय संबंध आवश्यक है। और विशेष प्रकार के निर्माण के लिए, लंगर पिन और लोहे की छड़ों का उपयोग किसी इमारत की नींव को “आधार-शिला” से जोड़ने के लिए किया जा सकता है, जो मिट्टी और बजरी जैसी सामग्रियों के नीचे कठोर, ठोस चट्टान होती है।

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घर मजबूत चट्टान पर बना है।

इसी तरह, अगर हमें दृढ़ और स्थिर रहना है तो हमारे जीवन की नींव मसीह की चट्टान पर बनी होनी चाहिए। उद्धारकर्ता के पुनर्स्थापित सुसमाचार की पवित्र अनुबंधों और विधियों की तुलना लंगर पिन और लोहे की छड़ों से की जा सकती है जिनका उपयोग एक इमारत को आधार से जोड़ने के लिए किया जाता है। हर बार जब हम विश्वास से पवित्र अनुबंधों को प्राप्त करते हैं, समीक्षा करते हैं, याद करते हैं और नवीनीकृत करते हैं, तो हमारे आत्मिक लंगर यीशु मसीह की “चट्टान” से अधिक मजबूती से और दृढ़ता से सुरक्षित हो जाते हैं।

इसलिए, जो कोई परमेश्वर में विश्वास करता है वह निश्चितता के साथ एक बेहतर संसार की, हां, यहां तक कि परमेश्वर के दाहिने हाथ की तरफ रहने की आशा कर सकता है, उस आशा से जो विश्वास से आती है, मनुष्यों की आत्माओं के लिए एक आश्रय बनाती है, जो परमेश्वर की महिमा करने के प्रति सदा अच्छे कार्य करने के लिए उन्हें दृढ़ और अटल बनाएगी।”11

वृद्धि के आधार पर और लगातार “समय की प्रक्रिया में,”12 “पवित्रता [हमारे] विचारों को अनवरत रूप से सजाती है,” “परमेश्वर की उपस्थिति में हमारा विश्वास [मजबूत और मजबूत होता जाता है],” और “पवित्र आत्मा [हमारी] निरंतर साथी रहती है।”13 हम अधिक स्थिर, आधारित, प्रमाणित और निश्चित हो जाते हैं।14 जबकि हमारे जीवन की नींव उद्धारकर्ता पर बनी है, इसलिए हम “शांत रहने” के लिए आशीषित हैं—यह आत्मिक आश्वासन पाने के लिए कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता हैं।

पवित्र समय, पवित्र स्थान और घर

प्रभु हमें हमारी आत्मा की इस आंतरिक शांति के बारे में अनुभव करने और सीखने में मदद करने के लिए पवित्र समय और पवित्र स्थान दोनों प्रदान करता हैं।

उदाहरण के लिए, विश्राम का दिन परमेश्वर का दिन है, जो उसके पुत्र के नाम पर पिता को याद करने और उसकी आराधना करने, पौरोहित्य विधियों में भाग लेने और पवित्र अनुबंधों को प्राप्त करने और नवीन करने के लिए अलग किया गया एक पवित्र समय है। प्रत्येक सप्ताह हम अपने गृह अध्ययन के दौरान और “पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी”15 के रूप में प्रभु-भोज और अन्य सभाओँ के दौरान परमेश्वर की आराधना करते हैं। उसके पवित्र दिन पर, हमारे विचार, कार्य और आचरण ऐसे संकेत हैं जो हम परमेश्वर को देते हैं और जो की उसके प्रति हमारे प्रेम का चिन्ह हैं।16 हर रविवार, यदि हम चाहें, तो हम शांत रह सकते हैं और जान सकते हैं कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता हैं।

विश्राम का दिन की हमारी आराधना की मुख्य विशेषता है “प्रार्थना के घर जाना और [प्रभु के] पवित्र दिन पर [हमारे] प्रभु भोज को अर्पित करना।”17 “प्रार्थना का घर” जिसमें हम विश्राम के दिन इकट्ठा होते हैं, सभागृह और अन्य स्वीकृत सुविधाएं हैं—श्रद्धा, आराधना और सीखने के पवित्र स्थान है। प्रत्येक सभागृह और सुविधा को पौरोहित्य प्राधिकार द्वारा एक ऐसे स्थान के रूप में समर्पित किया जाता है जहां प्रभु की आत्माा निवास कर सकती है और जहां परमेश्वर की संतान “अपने उद्धारकर्ता के ज्ञान में आ सकते हैं।”18 यदि हम चाहें, तो हम अपने पवित्र आराधना स्थलों में “शांत” रह सकते हैं और अधिक निश्चित रूप से जान सकते हैं कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता हैं।

मंदिर एक और पवित्र स्थान है जो विशेष रूप से परमेश्वर की आराधना और सेवा करने और अनंत सत्य सीखने के लिए अलग से रखा गया है। हम प्रभु के भवन में उन स्थानों से अलग सोचते, कार्य करते और वस्त्र पहनते हैं, जहां हम अक्सर आते हैं। उसके पवित्र भवन में, यदि हमारी इच्छा है, तो हम शांत रह कर जान सकते हैं कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता है, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है।

पवित्र समय और पवित्र स्थानों के मुख्य उद्देश्य बिल्कुल एक जैसे हैं: बार-बार हमारा ध्यान स्वर्गीय पिता और उसकी योजना, प्रभु यीशु मसीह और उसके प्रायश्चित, पवित्र आत्मा की शिक्षा देने वाली शक्ति और उद्धारकर्ता के पुनर्स्थापित सुसमाचार की विधियों और अनुबंधों से जुड़ी प्रतिज्ञाओं पर केंद्रित करना।

आज मैं उस सिद्धांत को दोहराता हूं जिस पर मैंने पहले भी जोर दिया है। हमारे घर पवित्र समय और पवित्र स्थान दोनों का बेजोड़ मिश्रण होना चाहिए जहां व्यक्ति और परिवार “शांत” रह सकें और जान सकें कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता हैं, हम उसकी संतान हैं, और यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता हैं। विश्राम के दिन और प्रभु के भवन में आराधना करने के लिए अपना घर छोड़ना निश्चित रूप से आवश्यक है। लेकिन जब हम उन पवित्र स्थानों और गतिविधियों में प्राप्त आत्मिक दृष्टिकोण और शक्ति के साथ अपने घरों में लौटते हैं तो हम नश्वर जीवन के प्राथमिक उद्देश्यों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी पतित दुनिया में प्रचलित प्रलोभनों पर काबू पा सकते हैं।

विश्राम दिन, मंदिर और घर के निरंतर अनुभवों को हमें पवित्र आत्मा की शक्ति, पिता और पुत्र के साथ निरंतर और मजबूत अनुबंध संबंध और परमेश्वर की अनंत प्रतिज्ञाओं में “आशा की पूर्ण चमक”19 के साथ मजबूत करता है।

जब घर और गिरजा दोनों मसीह में एकत्र होते हैं,20 तो बेशक हम हर तरफ से परेशान हों, लेकिन हम अपने मन और दिल में परेशान नहीं होंगे। हम अपनी परिस्थितियों और चुनौतियों से भ्रमित हो सकते हैं, लेकिन हम निराशा में नहीं होंगे। हमें सताया जा सकता है, लेकिन हम यह भी देखेंगे कि हम कभी अकेले नहीं हैं।21 हम दृढ़, स्थिर और सच्चे बनने और बने रहने के लिए आत्मिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

प्रतिज्ञा और गवाही

मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब हम यीशु मसीह की “चट्टान” पर अपने जीवन की नींव बनाते हैं, तब हम आत्मा की व्यक्तिगत और आत्मिक शांति पाने के लिए पवित्र आत्मा से आशीष प्राप्त कर सकते हैं जो हमें यह जानने और याद रखने में सक्षम बनाती है कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता है, हम उसकी संतान हैं, यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है, और हम कठिन कार्यों को करने और उन पर विजय पाने के लिए आशीषित हो सकते हैं।

मैं आनंदपूर्वक गवाही देता हूं कि परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता है , हम उसकी संतान हैं, यीशु मसीह हमारा मुक्तिदाता और हमारे उद्धार की “चट्टान” हैं। मैं यह गवाही प्रभु यीशु मसीह के पवित्र नाम में देता हूं, आमीन।