पवित्रशास्त्र
सिद्धांत और अनुबंध 93


खंड 93

भविष्यवक्ता जोसफ स्मिथ द्वारा, कर्टलैंड, ओहायो में, 6 मई 1833 में, दिया गया प्रकटीकरण ।

1–5, सब जो विश्वासी हैं प्रभु को देखेंगे; 6–18, यूहन्ना ने गवाही दी थी कि परमेश्वर का पुत्र अनुग्रह में बढ़ता गया जब तक उसने पिता की महिमा को प्राप्त नहीं कर ली; 19–20, विश्वासी लोग, अनुग्रह में बढ़ते हुए, उसकी परिपूर्णता को भी प्राप्त करेंगे; 21–22, वे जिन्होंने मसीह द्वारा नया जन्म लिया है पहलौठे की कलिसिया हैं; 23–28, मसीह ने संपूर्ण सच्चाई प्राप्त की थी, और मनुष्य आज्ञाकारिता द्वारा उसी रीति से प्राप्त करता है; 29–32, आरंभ में मनुष्य परमेश्वर के साथ था; 33–35, मूल तत्व अनंत हैं, और मनुष्य आनंद की परिपूर्णता पुनरूत्थान में प्राप्त कर सकता है; 36–37, परमेश्वर की महिमा बुद्धिमत्ता है; 38–40, मसीह की मुक्ति के कारण बच्चे परमेश्वर के सम्मुख निर्दोष है; 41–53, मार्गदर्शक भाइयों को अपने परिवार को ठीक से रखने की आज्ञा दी जाती है ।

1 सच में, प्रभु इस प्रकार कहता है: ऐसा होगा कि प्रत्येक प्राणी जो अपने पापों को त्याग देता और मेरे निकट आता, और मेरा नाम लेता, और मेरी वाणी का पालन करता, और मेरी आज्ञाओं का पालन करता है, मुझे प्रत्यक्ष देखेगा और जानेगा कि मैं हूं;

2 और कि मैं वह सच्ची ज्योति हूं जो प्रत्येक मनुष्य को प्रकाश देती है जो संसार में आता है;

3 और कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझे में है, और पिता और मैं एक हैं—

4 पिता क्योंकि उसने मुझे अपनी परिपूर्णता दी थी, और पुत्र क्योंकि मैं संसार में था और शरीर को मेरा निवास स्थान बनाया, और मनुष्यों की संतान के मध्य निवास किया ।

5 मैं संसार में था और अपने पिता के उत्तराधिकार को प्राप्त किया, और उसके कार्य स्पष्टता से प्रकट हुए थे ।

6 और यूहन्ना ने देखा और मेरी महिमा की परिपूर्णता की गवाही दी, और यूहन्ना की गवाही की परिपूर्णता इसके पश्चात प्रकट की होगी ।

7 और उसने गवाही दी, कहते हुए: मैंने उसकी महिमा को देखा, कि वह आरंभ में था, इस संसार से पहले;

8 इसलिए, आरंभ में वचन था, क्योंकि वह वचन था, अर्थात उद्धार का दूत—

9 संसार की ज्योति और मुक्तिदाता; सच्चाई की आत्मा, जो संसार में आया, क्योंकि संसार की रचना उसके द्वारा हुई थी, और उसमें मनुष्य का जीवन और मनुष्य की ज्योति थी ।

10 संसारों की रचना उसके द्वारा हुई थी; मनुष्यों की रचना उसके द्वारा हुई थी; प्रत्येक वस्तु की रचना उसके द्वारा, और उसमें, और उससे हुई थी ।

11 और मैं, यूहन्ना, गवाही देता हूं कि मैंने उसकी महिमा देखी थी, पिता के एकलौते पुत्र की महिमा के रूप में, अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण, अर्थात आत्मा की सच्चाई, जो शरीर में आई और निवास किया, और हमारे मध्य में रही ।

12 और मैं, यूहन्ना, ने देखा कि उसने पहले परिपूर्णता को प्राप्त नहीं किया था, लेकिन अनुग्रह से अनुग्रह प्राप्त किया था ।

13 और उसने पहले परिपूर्णता को प्राप्त नहीं किया था, लेकिन अनुग्रह से अनुग्रह जारी रखा, जब तक उसने परिपूर्णता को प्राप्त नहीं किया;

14 और इस प्रकार वह परमेश्वर का पुत्र कहलाया, क्योंकि उसने पहले परिपूर्णता को प्राप्त नहीं किया था ।

15 और मैं, यूहन्ना गवाही देता हूं, और देखो, स्वर्ग खुले, और पवित्र आत्मा कबूतर के रूप में उस पर नीचे उतरी, और उस पर बैठ गई, और स्वर्ग से वाणी यह कहते हुई आई: यह मेरा प्रिय पुत्र है ।

16 और मैं, यूहन्ना, गवाही देता हूं कि उसने पिता की महिमा की परिपूर्णता को प्राप्त किया था ।

17 और उसने संपूर्ण शक्ति को प्राप्त किया, स्वर्ग और पृथ्वी पर दोनों में, और पिता की महिमा उसके साथ थी, क्योंकि वह उसके साथ था, क्योंकि वह उसके साथ रहता था ।

18 और ऐसा होगा, कि यदि तुम विश्वासी हो तो तुम यहून्ना की गवाही की परिपूर्णता को प्राप्त करोगे ।

19 मैं तुम्हें ये निर्देश देता हूं कि तुम जान सको और समझो कैसे आराधना करनी है, और तुम्हें किस की आराधना करनी है, कि तुम मेरे नाम में पिता के पास आओ, और निश्चित समय में उसकी परिपूर्णता प्राप्त करो ।

20 क्योंकि यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करते हो तो तुम उसकी परिपूर्णता को प्राप्त करोगे, और मुझ में महिमा पाओगे जैसे मैंने पिता में, मैं तुम से कहता हूं, तुम अनुग्रह से अनुग्रह प्राप्त करोगे ।

21 और अब, मैं तुम से सच कहता हूं, मैं पिता के साथ आरंभ में था, और पहलौठा हूं;

22 और वे सब जो मेरे द्वारा उत्पन्न हुए हैं उसी महिमा के भागीदार हैं, और पहलौठे का गिरजा हैं ।

23 तुम पिता के साथ आरंभ में भी थे; जो आत्मा है, अर्थात सच्चाई की आत्मा;

24 और सच्चाई बातों का ज्ञान है जैसे वे हैं, और जैसे वे थीं, और जैसे वे होने वाली हैं;

25 और जो कुछ इससे अधिक या कम है वह उस दुष्ट की आत्मा है जो कि आरंभ से ही झूठा था ।

26 सच्चाई की आत्मा परमेश्वर की है । मैं सच्चाई की आत्मा हूं, यूहन्ना ने मेरी गवाही दी थी, कहते हुए: उसने सच्चाई की परिपूर्णता को प्राप्त किया था, हां, अर्थात संपूर्ण सच्चाई को;

27 और कोई मनुष्य परिपूर्णता को प्राप्त नहीं करता जब तक वह उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता ।

28 वह जो उसकी आज्ञाओं का पालन करता है सच्चाई और ज्योति को प्राप्त करता रहता है, जब तक वह सच्चाई की महिमा नहीं पाता और सब बातों को नहीं समझता ।

29 मनुष्य भी आरंभ में परमेश्वर के साथ था । बुद्धि, या सच्चाई की ज्योति, की रचना नहीं हुई थी या बनाई नहीं गई थी, न ही की जा सकती है ।

30 संपूर्ण सच्चाई उस गोलार्ध में स्वतंत्र है जिसमें परमेश्वर ने इसे स्थापित किया है, स्वयं कार्य करने के लिए, जिस प्रकार संपूर्ण बुद्धि भी है; वरना कोई अस्तित्व नहीं है ।

31 देखो, इसमें मनुष्य की स्वतंत्रता है, और इसमें मनुष्य का दंड है; क्योंकि जो आरंभ से था उन पर स्पष्टरूप से प्रकट किया गया है, और वे ज्योति को ग्रहण नहीं करते ।

32 और प्रत्येक मनुष्य जिसकी आत्मा ज्योति को ग्रहण नहीं करती है दंड के भागी हैं ।

33 क्योंकि मनुष्य आत्मा है । तत्व अनंत हैं, और आत्मा और तत्व, अभिन्नरूप से जुड़कर, आनंद की परिपूर्णता को ग्रहण करते हैं;

34 और जब अलग होते हैं, तो मनुष्य आनंद की परिपूर्णता नहीं ग्रहण कर सकता ।

35 तत्व परमेश्वर के अस्थायी निवास-स्थान हैं; हां, मनुष्य परमेश्वर का अस्थायी निवास-स्थान है, अर्थात मंदिर हैं; और जो कोई मंदिर को अशुद्ध करता है, परमेश्वर उस मंदिर को नष्ट करेगा ।

36 परमेश्वर की महिमा बुद्धि है, या, अन्य शब्दों में, ज्योति और सच्चाई ।

37 ज्योति और सच्चाई उसका त्याग करती है जो बुरा है ।

38 मनुष्य की प्रत्येक आत्मा आरंभ में निर्दोष थी; और परमेश्वर द्वारा मनुष्य को पतन से मुक्त करने के पश्चात, मनुष्य फिर से, अपनी निर्दोष अवस्था में आ गए, परमेश्वर के सम्मुख निर्दोष ।

39 और वह दुष्ट आता है और ज्योति और सच्चाई को दूर ले जाता है, अवज्ञाकारिता के द्वारा, मनुष्यों की संतान से, और उनके पू्र्वजों की परंपराओं के कारण ।

40 लेकिन मैंने तुम्हें आदेश दिया है अपने बच्चों को ज्योति और सच्चाई में बड़ा करो ।

41 लेकिम मैं तुम से सच कहता हूं, मेरे सेवक फ्रैड्रिक जी. विलयमस, तुम निरंतर इस दंड के अधीन रहे हो;

42 तुमने अपने बच्चों को ज्योति और सच्चाई की शिक्षा नहीं दी, आज्ञाओं के अनुसार; और कि दुष्ट, अभी भी, तुम पर हावी है, और यह तुम्हारे कष्टों का कारण है ।

43 और अब मैं एक आज्ञा तुम्हें देता हूं—यदि तुम मुक्त किए जाओगे तो तुम अपने स्वयं के घर को ठीक करोगे, क्योंकि बहुत सी बातें हैं जो तुम्हारे घर में ठीक नहीं हैं ।

44 मैं तुम से सच कहता हूं, मेरे सेवक सिडनी रिगडन, कि कुछ बातों में उसने आज्ञाओं का पालन नहीं किया है अपने बच्चों के संबंध में; पहले अपने घर को ठीक करो ।

45 मैं तुम से सच कहता हूं, मेरे सेवक जोसफ स्मिथ, जु., या अन्य शब्दों में, मैं तुम्हें मित्र कहूंगा, क्योंकि तुम मेरे मित्र हो, और तुम मेरे साथ उत्तराधिकार प्राप्त करोगे—

46 मैं तुम्हारे संसार के कारण सेवक कहता हूं, और तुम मेरे उद्देश्यों के लिए उनके सेवक हो—

47 और अब, जोसफ स्मिथ, जु., मैं तुम से सच कहता हूं—तुमने आज्ञाओं का पालन नहीं किया है, और प्रभु के सम्मुख फटकारा जाना जरूरी है;

48 तुम्हारे परिवार को कुछ बातों का पश्चाताप और त्याग करना जरूरी है, और तुम्हारी बातों में अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए, वरना उन्हें उनके स्थान से हटा दिया जाएगा ।

49 जो मैं एक से कहता हूं वह मैं सबसे कहता हूं; हमेशा प्रार्थना करते रहो कहीं वह दुष्ट तुम पर हावी न हो जाए, और तुम्हें तुम्हारे स्थान से हटा दे ।

50 मेरे सेवक न्यूवेल के. विटनी, मेरे गिरजे के धर्माध्याक्ष, को भी फटकारे जाने, और उसके घर को ठीक किए जाने की जरूरत है, और निश्चित करें कि वे घर में अधिक परिश्रमी और जिम्मेदारियों को निभाते, और हमेशा प्रार्थना करते हैं, वरना उन्हें उनके स्थान से हटा दिया जाएगा ।

51 अब, मेरे मित्रों, मैं तुम से कहता हूं, मेरा सेवक सिडनी रिगडन अपनी यात्रा पर जाए, और जल्दी करे, और प्रभु को स्वीकार्य वर्ष की घोषणा भी करे, और उद्धार का सुसमाचार, जब मैं उसे बोलने योग्यता दूंगा; और विश्वास की तुम्हारी प्रार्थना के द्वारा एकमत से उसे मैं सहारा दूंगा ।

52 और मेरे सेवक जोसफ स्मिथ, जु., और फ्रैड्रिक जी., विलयमस भी जल्दी करें, और यह उन्हें दिया जाएगा विश्वास की प्रार्थना के अनुसार; और जितना अधिक तुम मेरी बातों का पालन करते हो तुम्हें न तो इस संसार में, और न ही आने वाले संसार में पराजित किया जाएगा ।

53 और, मैं तुम से सच कहता हूं, कि यह मेरी इच्छा है कि तुम मेरे धर्मशास्त्रों का अनुवाद करने, और इतिहास का, और देशों का, और राज्यों का, परमेश्वर और मनुष्य की व्यवस्थाओं का ज्ञान पाने में जल्दी करो, और यह सब सिय्योन के उद्धार के लिए । आमीन ।